Friday, August 10, 2012

घाट

पेड़
तालाब का पार
उससे बंधा पानी
किनारे
यहाँ वहाँ
घाट
वही है
शुरू से
हर बार सिर्फ
बदल जाती है
लाश
कुछ कंधे
सब कुछ ऐसा ही
चलता है
एक बंधे बंधाए 
क्रम के साथ
.........................
क्रमानुसार
लोग आयेंगे
मेरे भी पीछे
पांत पांत
सिर्फ वापसी पर
नहीं हो पायेगा
उनसे मेरा साथ  

04.10.1988
चित्र गूगल से साभार 

15 comments:

  1. "सिर्फ वापसी पर
    नहीं हो पायेगा
    उनसे मेरा साथ"
    सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  2. जीवन का अंतिम सत्य - मृत्यु, जहाँ अकेले ही जाना होता है. सब कुछ यथावत, घाट का किनारा, शोक, अग्नि, मंत्र... सिर्फ कंधे और पथिक बदलते हैं. बहुत प्रभावशाली रचना, बधाई.

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  3. आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा आपकी पोस्ट सराहनीय है..श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ BHARTIY NARI

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  4. लोग आयेंगे
    मेरे भी पीछे
    पांत पांत
    सिर्फ वापसी पर
    नहीं हो पायेगा
    उनसे मेरा साथ

    जीवन के शाश्वत सत्य को उजागर करते मनोभावों को व्यक्त करती रचना.

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  5. सिलसिले का थम जाना.

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  6. एक निर्मम सत्य से परिचित कराती आपकी प्रस्तुति काफी प्रभावकारी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका हार्दिक अभिनंदन है । धन्यवाद ।

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  7. जीवन का अंतिम सत्य..

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  8. चिरन्तन सत्य

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  9. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो
    कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
    स्वरों में कोमल निशाद
    और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी
    किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता
    है...

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
    .. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
    ..
    Feel free to visit my web page - खरगोश

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  10. इस सच को आत्मसात करना कितना मुश्किल है

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  11. जीवन के अंतिम किंतु अदृय ‘दृश्य‘ का मर्मस्पर्शी चित्रण !

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  12. एक गहन सत्‍य ... आभार इस प्रस्‍तुति के लिए

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  13. मरघट तक सब जाते हैं लेकिन क्या कोई इतनी संवेदनशीलता रख पाता है जाने वाले पर...

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