Tuesday, August 28, 2012

आम बनाम बबूल

सपने हंसते हैं

सपने रोते हैं

सपने सच भी होते हैं

अक्सर उनके

जो सिर्फ

बबूल बोते हैं 

Friday, August 10, 2012

घाट

पेड़
तालाब का पार
उससे बंधा पानी
किनारे
यहाँ वहाँ
घाट
वही है
शुरू से
हर बार सिर्फ
बदल जाती है
लाश
कुछ कंधे
सब कुछ ऐसा ही
चलता है
एक बंधे बंधाए 
क्रम के साथ
.........................
क्रमानुसार
लोग आयेंगे
मेरे भी पीछे
पांत पांत
सिर्फ वापसी पर
नहीं हो पायेगा
उनसे मेरा साथ  

04.10.1988
चित्र गूगल से साभार