Thursday, April 26, 2012

ईश्वर

मुझे प्रारंभ से ही या यूं कहूं कि किशोरावस्था से ही 'ईश्वर' के अस्तित्व पर संदेह रहा है यानि उस पारलौकिक शक्ति या सत्ता पर, जिसे सामान्य समझ, संदर्भ और चर्चा में ईश्वर कहा या समझा जाता है ...

यह संदेह उस सत्ता पर है जो पूजा-अर्चना करने, किसी निश्चित दिन या वार को इसके विशिष्ट अवतार या रूप के पास जाने, मत्था टेकने, अगरबत्ती धूप या अन्य सुगंधियां जलाने, किसी निश्चित जाति, रंग, किस्म का फूल, वनस्‍पति चढ़ाने या बलि देने पर प्रसन्न हो कर पुरस्कृत करती है और हर रोज या त्यौहारों, जयंतियों और तिथियों पर उसका स्‍मरण/स्‍तुति न करने सांसारिक खुशियां या उपलब्धियां हासिल होने पर निश्चित किस्म, गुणवत्ता या निश्चित मात्रा की मिठाई या भोग प्रसाद के रूप में चढ़ा कर आभार व्यक्त न करने पर अप्रसन्न हो दैहिक और भौतिक तापों से दंडित करती है ...

मेरा, ऐसी किसी भी सत्ता पर प्रारंभ से ही संदेह बना रहा है. अब समय गुजरने के साथ-साथ आयु की परिपक्वता और कई घटनाओं से दो-चार होने के पश्चात्‌ मेरा यह निश्चित और दृढ़ मत है कि ऐसी कोई शक्ति (ईश्वर) जो मानव जीवन को प्रभावित, नियंत्रित या दिग्दर्शित करती है, उसकी लय और ताल की बद्धता, ऊंचाई और गहराई के ग्राफ को निर्धारित करती है सांसारिक दुख और सुख के क्षण उत्पन्न करती है या उसे हर लेती है- कतई अस्तित्वमान नहीं है, और यदि है तो उसका मानव जीवन से कोई आसंग या सरोकार नहीं है ...

जीवन, स्वतंत्र रूप से बिना किसी कार्य-कारण सिद्धांत के, बिना किसी निश्चित चर्या और भविष्यवाणी न की जा सकने वाली घटनाओं के बीच अनिश्चित स्रोतों और संयोगों से अपनी गिज़ा हासिल करता है और अपना रास्ता तय करता है.

Saturday, April 21, 2012

पुनर्नवा

जीना
उन्हीं क्षणों को
फिर-फिर
जिन्हें जिया
होकर अस्थिर
आकृति नई है
पर व्यक्ति परिचित
अथवा
व्यक्ति वही
आकृति परिवर्तित
पर समय न ही
प्रतीक्षा करता
न ही लौटता
कभी
उन्हीं बिन्दुओं पर
फिर

Thursday, April 5, 2012

कनुप्रिया के लिए

मेरे घर आई एक प्यारी परी,
सोचते हैं लोग क्यूं आती है मुझसे मिलने
और मैं क्यूं हो जाता हूं बेचैन उसके बिना
क्यूं याद करता हूं और बातें करता हूं
पूरे दिन, देर रात और सपनों में भी उससे
वो मेरी कोई नहीं, लोग कहते हैं.
मैं उसका कोई नहीं, मैं जानता हूं
फिर क्यूं मुझे अपनी सी लगती है
मेरे लिए इतना क्यूं सोचती है.
मेरी इतनी परवाह क्यूं करती है.
सोचता हूं अक्सर, शायद
पिछले जन्म का कोई रिश्ता हो इसलिए
ईश्वर ने बंधन, बांधने में कोई भूल की इसलिए
मैं जानता हूं
वह मुझसे बेहतर जानती है मेरे बारे में
फिर भी अक्सर कहती है
मानसरोवर तक उड़ने के लिए
अब भी वक्त है
जबकि हम दोनों जानते हैं, वक्त की मार
मुझ पर कितनी सख्त है
फिर भी थके पंखों से एक बार
मानसरोवर तक उड़ने को, मन करता है
उसके लिए एक अंजुरी
खुशियों के मोती चुनने का, मन करता है
उसके साथ एक सपना बुनने को, मन करता है
उसके लिए एक और जिंदगी जीने का, मन करता है.

17/11/1992