पेड़
तालाब का पार
उससे बंधा पानी
किनारे
यहाँ वहाँ
घाट
वही है
शुरू से
हर बार सिर्फ
बदल जाती है
लाश
कुछ कंधे
सब कुछ ऐसा ही
चलता है
एक बंधे बंधाए
क्रम के साथ
.........................
क्रमानुसार
लोग आयेंगे
मेरे भी पीछे
पांत पांत
सिर्फ वापसी पर
नहीं हो पायेगा
उनसे मेरा साथ
04.10.1988
चित्र गूगल से साभार
तालाब का पार
उससे बंधा पानी
किनारे
यहाँ वहाँ
घाट
वही है
शुरू से
हर बार सिर्फ
बदल जाती है
लाश
कुछ कंधे
सब कुछ ऐसा ही
चलता है
एक बंधे बंधाए
क्रम के साथ
.........................
क्रमानुसार
लोग आयेंगे
मेरे भी पीछे
पांत पांत
सिर्फ वापसी पर
नहीं हो पायेगा
उनसे मेरा साथ
04.10.1988
चित्र गूगल से साभार
"सिर्फ वापसी पर
ReplyDeleteनहीं हो पायेगा
उनसे मेरा साथ"
सुन्दर अभिव्यक्ति.
जीवन का अंतिम सत्य - मृत्यु, जहाँ अकेले ही जाना होता है. सब कुछ यथावत, घाट का किनारा, शोक, अग्नि, मंत्र... सिर्फ कंधे और पथिक बदलते हैं. बहुत प्रभावशाली रचना, बधाई.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा आपकी पोस्ट सराहनीय है..श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ BHARTIY NARI
ReplyDeleteलोग आयेंगे
ReplyDeleteमेरे भी पीछे
पांत पांत
सिर्फ वापसी पर
नहीं हो पायेगा
उनसे मेरा साथ
जीवन के शाश्वत सत्य को उजागर करते मनोभावों को व्यक्त करती रचना.
किमाश्चर्यम..
ReplyDeleteसिलसिले का थम जाना.
ReplyDeleteएक निर्मम सत्य से परिचित कराती आपकी प्रस्तुति काफी प्रभावकारी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका हार्दिक अभिनंदन है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteमसान चिंतन।
ReplyDeleteजीवन का अंतिम सत्य..
ReplyDeleteचिरन्तन सत्य
ReplyDeleteखरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो
ReplyDeleteकि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
स्वरों में कोमल निशाद
और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी
किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता
है...
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
..
Feel free to visit my web page - खरगोश
इस सच को आत्मसात करना कितना मुश्किल है
ReplyDeleteजीवन के अंतिम किंतु अदृय ‘दृश्य‘ का मर्मस्पर्शी चित्रण !
ReplyDeleteएक गहन सत्य ... आभार इस प्रस्तुति के लिए
ReplyDeleteमरघट तक सब जाते हैं लेकिन क्या कोई इतनी संवेदनशीलता रख पाता है जाने वाले पर...
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