पहले मैं सपने बुनता हूं
फिर उन्हें गिनता हूं
ज्यादा लगने पर
उधेड़ता हूं
एक गोला सा बनाता हूं
और
इस तरह आजकल
बच्चों को मनाता हूं
रूठने पर उनके
दे कर नई गेंद.
19.06.1990
जूता, मोजा, छाता
बरसाती
रिमझिम-रिमझिम
बारिश आती
कापी, पुस्तक, कलम
औ' निब
नए साल पर दूनी फीस
बच्चों पर बस्ते हैं बीस
मम्मी-डैडी निकालें खीस
जुलाई की पहली तारीख
जा बेटा अंगरेजी सीख.
04.07.1991
पहले मैं सपने बुनता हूं
ReplyDeleteफिर उन्हें गिनता हूं
ज्यादा लगने पर
उधेड़ता हूं
एक गोला सा बनाता हूं
और
इस तरह आजकल
बच्चों को मनाता हूं
waah
इस तरह आजकल
ReplyDeleteबच्चों को मनाता हूं ...।
बहुत ही सुन्दर ।
Wah!
ReplyDeleteशानदार है, सपने बनाना, फिर उन्हे उधेड्कर पुनः गेंद बना देना।
ReplyDeletebahut sundar ..
ReplyDeleteदोनों क्षणिकाएं बहुत सुंदर .....
ReplyDeleteइस तरह की ९,१० क्षणिकाएं भेजिएगा ....
सरस्वती सुमन पत्रिका के लिए जिसकी एक अंक की संपादिका मैं रहूंगी ..
क्षणिकाओं के साथ अपना संक्षिप्त परिचय और चित्र भी भेजें ....
यहाँ .....
harkiratheer@yahoo.in
सुन्दर क्षणिकाएं.
ReplyDeleteसपनों का गोला...
ReplyDeleteएकदम मौलिक विचार।
दोनों क्षणिकाएं बहुत सुंदर ....
ReplyDeleteआपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
ReplyDeleteसरल और सुंदर..!!
ReplyDeletesapno ka gola .......bahut sahi kaha aapne .....
ReplyDeleteसुन्दर क्षणिकाएं| धन्यवाद|
ReplyDeleteदोनों क्षणिकाएं बहुत सुंदर ....
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