ऐसा तो
अक्सर हो जाता है
अक्सर हो जाता है
मेरे ही साथ
बैठे हों पास-पास
या
चल रहे हों साथ-साथ
हाथ को सुझाई
नहीं देता हाथ
नहीं देता हाथ
ऐसे में भला
कैसे हो
कैसे हो
आदमी से आदमी के बीच
फासले की
फासले की
सही माप.
11.07.1989
अंदेशे
और
संदेशे
के बीच
भटका मन
फिर हुई ना
अ-न-ब-न.
15.08.1994
बहुत ही सुन्दर ।
ReplyDeleteChhoti-si rachnaon ne kya kuchh nahee kaha!!Bahut khoob!
ReplyDeleteसुन्दर क्षणिकाएं ......कम शब्दों में बहुत कुछ
ReplyDeleteऐसा तो अक्सर हो जाता है
ReplyDeleteमेरे ही साथ
बैठे हों पास-पास
या
चल रहे हों साथ-साथ
हाथ को सुझाई नहीं देता हाथ
ऐसे में भला कैसे हो
आदमी से आदमी
के बीच फासले की
सही नाप.
bahut hi badhiya
सुन्दर क्षणिकाएं .बधाई.
ReplyDeletegagar me sagar bhar diya hai aapne ........Badhai.........
ReplyDeleteअनबन होते ही चारों अक्षर दूर-दूर हो गए हैं।
ReplyDeleteप्रस्तुति का बेहतरीन अंदाज़। आनंद आ गया । अनबन में बढती दूरियों का उम्दा चित्रण ।
ReplyDeleteहफ़्तों तक खाते रहो, गुझिया ले ले स्वाद.
ReplyDeleteमगर कभी मत भूलना,नाम भक्त प्रहलाद.
होली की हार्दिक शुभकामनायें.
बहुत सुन्दर कविता ! उम्दा प्रस्तुती! ! बधाई!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!