Thursday, March 3, 2011

ताल्‍लुक

ऐसा तो
अक्‍सर हो जाता है
मेरे ही साथ
बैठे हों पास-पास
या
चल रहे हों साथ-साथ
हाथ को सुझाई
नहीं देता हाथ
ऐसे में भला
कैसे हो
आदमी से आदमी के बीच
फासले की
सही माप.
11.07.1989

अंदेशे
और
संदेशे
के बीच
भटका मन
फिर हुई ना
अ-न-ब-न.
15.08.1994

10 comments:

  1. बहुत ही सुन्‍दर ।

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  2. Chhoti-si rachnaon ne kya kuchh nahee kaha!!Bahut khoob!

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  3. सुन्दर क्षणिकाएं ......कम शब्दों में बहुत कुछ

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  4. ऐसा तो अक्‍सर हो जाता है
    मेरे ही साथ
    बैठे हों पास-पास
    या
    चल रहे हों साथ-साथ
    हाथ को सुझाई नहीं देता हाथ
    ऐसे में भला कैसे हो
    आदमी से आदमी
    के बीच फासले की
    सही नाप.
    bahut hi badhiya

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  5. सुन्दर क्षणिकाएं .बधाई.

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  6. gagar me sagar bhar diya hai aapne ........Badhai.........

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  7. अनबन होते ही चारों अक्षर दूर-दूर हो गए हैं।

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  8. प्रस्तुति का बेहतरीन अंदाज़। आनंद आ गया । अनबन में बढती दूरियों का उम्दा चित्रण ।

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  9. हफ़्तों तक खाते रहो, गुझिया ले ले स्वाद.
    मगर कभी मत भूलना,नाम भक्त प्रहलाद.

    होली की हार्दिक शुभकामनायें.

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  10. बहुत सुन्दर कविता ! उम्दा प्रस्तुती! ! बधाई!
    आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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