हाथ कंगन को आरसी क्या
पढ़े-लिखे को फारसी क्या
जो कंगन पाएगा
गंगा नहाएगा
वैतरणी पार कर जाएगा
फारसी पढ़ने वाला
तेल बेचने जाएगा.
16.04.1992
गर्दन सिर्फ नापिएगा
मुट्ठी ज्यादा जोर से
मत चांपिएगा
दम निकल जाएगा
बेचारा मर जाएगा
गुनाह
बेलज्जत हो जाएगा
नाप संभाल कर रखिएगा
अगले चुनाव में
हलाल के काम आएगा.
16.04.1992
पढ़े-लिखे को फारसी क्या
जो कंगन पाएगा
गंगा नहाएगा
वैतरणी पार कर जाएगा
फारसी पढ़ने वाला
तेल बेचने जाएगा.
16.04.1992
गर्दन सिर्फ नापिएगा
मुट्ठी ज्यादा जोर से
मत चांपिएगा
दम निकल जाएगा
बेचारा मर जाएगा
गुनाह
बेलज्जत हो जाएगा
नाप संभाल कर रखिएगा
अगले चुनाव में
हलाल के काम आएगा.
16.04.1992
मस्त हैं भाई साहब, कहाँ थे अब तक आप?
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचनायें राजेश जी ।
ReplyDeleteबहुत सटीक अभिव्यक्ति ...आपका आभार ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए
ReplyDeleteबहुत सटीक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteशानदार है आपका यह लोकतंत्र!!
ReplyDeleteकंगन और फारसी का चिंतनतंत्र!!
स्वागत है आपका .....
ReplyDeleteबहुत तीखा व्यंग्य है दोनों कविताओं में।
ReplyDeleteशुभकामनाएं।
bilkul sahi kaha aapne......yahi loktantra hai...........badhi
ReplyDeleteआद.राजेश जी,
ReplyDeleteदोनों ही रचनाएं मौजूदा हालात पर करारा व्यंग्य है !
Wah!Maza aa gaya padhke!
ReplyDeletebahut steek swaal ka steek sa vyngy vaan ...blog jagat par aapka swagat hai ...
ReplyDeletebahut sunder prstuti ...
ReplyDeletesir aap bahut achchha likhate hain yah likhane ki zarurat nahin. aapase anurodha ise nirnantar rakhiye. sath hi PAIRRI PRODUCTION KI FILM FAL DAN par bhi apana samay nikalen .
ReplyDeleteSIR I LOVE YOU SO MUCH