Friday, February 18, 2011

लोकतंत्र

हाथ कंगन को आरसी क्‍या
पढ़े-लिखे को फारसी क्‍या
जो कंगन पाएगा
गंगा नहाएगा
वैतरणी पार कर जाएगा
फारसी पढ़ने वाला
तेल बेचने जाएगा.
16.04.1992


गर्दन सिर्फ नापिएगा
मुट्ठी ज्‍यादा जोर से
मत चांपिएगा
दम निकल जाएगा
बेचारा मर जाएगा
गुनाह
बेलज्‍जत हो जाएगा
नाप संभाल कर रखिएगा
अगले चुनाव में
हलाल के काम आएगा.
16.04.1992

13 comments:

  1. मस्त हैं भाई साहब, कहाँ थे अब तक आप?

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  2. बहुत बढ़िया रचनायें राजेश जी ।

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  3. बहुत सटीक अभिव्यक्ति ...आपका आभार ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए

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  4. बहुत सटीक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

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  5. शानदार है आपका यह लोकतंत्र!!

    कंगन और फारसी का चिंतनतंत्र!!

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  6. बहुत तीखा व्यंग्य है दोनों कविताओं में।
    शुभकामनाएं।

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  7. bilkul sahi kaha aapne......yahi loktantra hai...........badhi

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  8. आद.राजेश जी,
    दोनों ही रचनाएं मौजूदा हालात पर करारा व्यंग्य है !

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  9. sir aap bahut achchha likhate hain yah likhane ki zarurat nahin. aapase anurodha ise nirnantar rakhiye. sath hi PAIRRI PRODUCTION KI FILM FAL DAN par bhi apana samay nikalen .
    SIR I LOVE YOU SO MUCH

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