अझिप आँखों से देखता हूँ सपने
बंद आँखों से साफ-साफ तुम्हें
तुम्हारे उस चेहरे को
जिसे तुम कभी नहीं देख पाती
अपनी आँखों से
चेहरे को आँखों से
आँखों से चेहरे को
बहुत देख चुके हम
अब देखने दो
आँखों-आँखों में
एक-दूसरे का अक्स
सोते-जागते
खुली-बंद आँखों से
सुबह से शाम तक
हर वक़्त
जरुरत ब्लॉग के सृजनकर्ता बाबू साहब रमाकांत सिंह को समर्पित
निःशब्द करते भाव पहेली की भांति खुद को निहारते अद्भुत चित्रण आपने इस लायक समझा ह्रदय से आभार ...
ReplyDeleteमन की आंखें खोलने वाली.
ReplyDeleteगहरे, सुंदर भाव
ReplyDeleteशुभ लाभ ।Seetamni. blogspot. in
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