नन्हें-नन्हें कदमों से चलते
छोटे-छोटे मासूम ख्वाब
आते हैं दिल वालों(?) की दिल्ली में
पूरे हिंदुस्तान से
इस बार आया था
बलिया के किसी गाँव से
ख्वाबों की दिल्ली
ख्वाब .......................
अपनी एक पहचान और पता ढूंढने
अक्षर के धाम में कुछ मांगने
क़ुतुब मीनार को छूकर देखने
संसद की दीर्घा में बैठने
और इंडिया गेट पर शहीदों को याद करने
जिन्होंने अपना आज दिया
हमारे बेहतर कल के लिए
अक्सर टूट जाते हैं कभी काले शीशे वाली बसों में
बड़ी सी मोटरकार की पिछली सीट पर
कालेज के कैम्पस में
और कोलतार से काली चिकनी सडकों पर
लाल पीली हरी बत्तियों की
आँखों के सामने
तब किसी दामिनी के ख्वाब सवाल करते हैं
पूरे हिंदुस्तान से
गुस्से और हताशा से बंधी मुट्ठियों में
हजारों-हज़ार
मोम बत्तियां थामे
क्या कोई सुनेगा?
क्या कोई सुनेगा?
क्या कोई सुनेगा?
छोटे-छोटे मासूम ख्वाब
आते हैं दिल वालों(?) की दिल्ली में
पूरे हिंदुस्तान से
इस बार आया था
बलिया के किसी गाँव से
ख्वाबों की दिल्ली
ख्वाब .......................
अपनी एक पहचान और पता ढूंढने
अक्षर के धाम में कुछ मांगने
क़ुतुब मीनार को छूकर देखने
संसद की दीर्घा में बैठने
और इंडिया गेट पर शहीदों को याद करने
जिन्होंने अपना आज दिया
हमारे बेहतर कल के लिए
अक्सर टूट जाते हैं कभी काले शीशे वाली बसों में
बड़ी सी मोटरकार की पिछली सीट पर
कालेज के कैम्पस में
और कोलतार से काली चिकनी सडकों पर
लाल पीली हरी बत्तियों की
आँखों के सामने
तब किसी दामिनी के ख्वाब सवाल करते हैं
पूरे हिंदुस्तान से
गुस्से और हताशा से बंधी मुट्ठियों में
हजारों-हज़ार
मोम बत्तियां थामे
क्या कोई सुनेगा?
क्या कोई सुनेगा?
क्या कोई सुनेगा?
भीड़ के बियाबां में खोती चीख.
ReplyDeleteआपके लेखनी की अनुगूंज लोगो तक पहुचे और समाज इस वेदना का निदान खोजने में सार्थक पहल करे .बहुत ही मार्मिक और दिल को छूनेवाली . कोटिशः बधाई ...
ReplyDeleteआपके प्रेम पत्र का भी अभी तक इंतज़ार है .....भले ही वेलेंटाइन डे निकल गया।
दिल वालों की दिल्ली में अक्सर ख्वाब लहुलुहान होते हैं. अच्छी रचना. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteविवशता की अकथ कथा -गहरे संस्पर्श करती कविता!
ReplyDeleteमंगल कामनाएं ...
ReplyDeleteहजारों - हज़ार
ReplyDeleteमोम बत्तियां थामे
क्या कोई सुनेगा ?
क्या कोई सुनेगा ?
क्या कोई सुनेगा ?........हजारों लोग ...हजारों सवाल ....पर क्या हुआ ...क्या कभी कोई सुनवाई होगी ?
अच्छी रचना.
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी पुकार!
ReplyDeleteबहरों के शहर में, अवाज़ बेमानी
ReplyDeleteजेसिका लाल हो या दमित दामिनी :(
हृदयस्पर्शी !
बहुत मर्मस्पर्शी ....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
अक्सर टूट जाते हैं कभी काले शीशे वाली बसों में
ReplyDeleteबड़ी सी मोटरकार की पिछली सीट पर
कालेज के कैम्पस में
और कोलतार से काली चिकनी सडकों पर.......pta nahi kab rukegaa ye silsila .......danav bna manav kab manav banega .....