आ गए चुनाव
वेताल को पेड़ पर लटका छोड़
चल दिया विक्रमार्क
बैनर और पोस्टर टांगने
समदर्शी होकर
क्या फर्क पड़ता है
अगर कहीं पंजा कमल को दबोचता है
कही हाथी दोनों को कुचलता है
हाथी पे भारी है
सायकिल की सवारी
हंसिया काटता है
जरखेज जमीनों की बीमार फसल
और हथौड़ा अन्धों की तरह सबको कूटता है
लालटेन, किरासन की कतार में खड़े-खड़े बुझ रही है
ग्रास रूट की हरी-भरी फसल को बाड़ खुद चर रही है
राष्ट्रवादी पार्टी क्रिकेट के मैदान पर खड़ी
कभी बाउंसर कभी गुगली फ़ेंक रही है
नई-नई पतंगें परवान चढ़ रही हैं
अन्ना की टोपी उतर रही है
आम आदमी (?) के सिर चढ़ रही है
क्या करे विक्रमार्क
सिर्फ कहानियों से घर थोड़ी चलता है
तलवार किराने दुकान में गिरवी पड़ी है
वेताल की कथाएं
अब अप्रासंगिक हो चली हैं
पर अब भी इंतज़ार कर रहा है
विक्रमार्क का
वेताल को पेड़ पर लटका छोड़
चल दिया विक्रमार्क
बैनर और पोस्टर टांगने
समदर्शी होकर
क्या फर्क पड़ता है
अगर कहीं पंजा कमल को दबोचता है
कही हाथी दोनों को कुचलता है
हाथी पे भारी है
सायकिल की सवारी
हंसिया काटता है
जरखेज जमीनों की बीमार फसल
और हथौड़ा अन्धों की तरह सबको कूटता है
लालटेन, किरासन की कतार में खड़े-खड़े बुझ रही है
ग्रास रूट की हरी-भरी फसल को बाड़ खुद चर रही है
राष्ट्रवादी पार्टी क्रिकेट के मैदान पर खड़ी
कभी बाउंसर कभी गुगली फ़ेंक रही है
नई-नई पतंगें परवान चढ़ रही हैं
अन्ना की टोपी उतर रही है
आम आदमी (?) के सिर चढ़ रही है
क्या करे विक्रमार्क
सिर्फ कहानियों से घर थोड़ी चलता है
तलवार किराने दुकान में गिरवी पड़ी है
वेताल की कथाएं
अब अप्रासंगिक हो चली हैं
पर अब भी इंतज़ार कर रहा है
विक्रमार्क का
यह रचना जरुरत ब्लाग पर "विक्रम और वेताल श्रृंखला के रचियता भाई रमाकांत को समर्पित .सादर
ReplyDeleteचुनावी दंगल में सब पर भारी जनता का दांव.
ReplyDeleteसमसामायिक रचना..
ReplyDeleteहंसिया काटता है
ReplyDeleteजरखेज जमीनों की बीमार फसल
और हथौड़ा अन्धों की तरह सबको कूटता है
लालटेन, किरासन की कतार में खड़े-खड़े बुझ रही है
ग्रास रूट की हरी-भरी फसल को बाड़ खुद चर रही है
आपने समाज और समाज के तथाकथित ठेकेदारों का असली रूप दिखाने का प्रयास किया है . शायद जो घट रहा है वही सांचे में ढल गया . आभार आपके समर्पण का .
सिर्फ कहानियों से घर थोड़ी चलता है...sahi bat...
ReplyDeleteअगर कहीं पंजा कमल को दबोचता है
ReplyDeleteकही हाथी दोनों को कुचलता है
हाथी पे भारी है
सायकिल की सवारी
हंसिया काटता है
आज के वर्तमान राजनीतिक परिवेश पर आधारित आपकी कविता प्रासांगिक लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।