Thursday, September 27, 2012

परिंदे ऐसे आते हैं


आज सुबह जब आंख खुली

रात की आलस धुली
मैंने पाया
मैं चिड़िया बन गया हूँ
तोता, मैना, कलहंस
या बुलबुल
या उकाब
नहीं जनाब
महज एक कठफोड़वा
सोचा घूम आऊं ब्रश करके
लेकिन वहां तो थे ही नहीं दांत
ठकठकाने लगा एक शाख
चोंच साफ हो न हो छेद कर पाने पर
जम तो जाएगी धाक
किस्मत की बात है
मिल जाएँ कीड़े और इल्लियाँ
छाल की दरार में मकड़ियाँ
नाश्ता तो जरुरी है
छूट गए हाथ और दांत
पर डैनों और पंजों के साथ भी
यही दुःख है
साथ तो है ही पेट
और पेट के साथ
भूख है

6 comments:

  1. यही दुःख है
    साथ तो है ही पेट
    और पेट के साथ
    भूख है
    भाव विह्वल करते शब्‍द ...

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  2. इतना मुश्किल न था
    जुटाना दाने को
    रहा मोहताज पर
    आदमी बन पंछी भी!

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  3. छूट गए हाथ और दांत
    पर डैनों और पंजों के साथ भी
    यही दुःख है
    साथ तो है ही पेट
    और पेट के साथ
    भूख है

    परिंदों को आत्मसात करना आप जैसे भावुक मानुष के ही बस की बात है .उम्दा अभिव्यक्ति जहाँ जीवन की झलक हर पल दिनचर्या में, एक अनुरोध आप दिया हुआ वादा नहीं भूलते क्या कारन है आपका प्रेम पत्र मुझे नहीं मिल पाया या मैं इस योग्य नहीं

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  4. लगा ही रहता है सबके साथ मुंह-पेट.

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  5. क्षुधाबन्धन कैसे टूटे ...

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