Tuesday, June 12, 2012

मौत

मौत – 1

मौत
चूहों के लिए
बिल्‍ले की तरह आती है
गुर्राती है
डराती है
खिलाती है/खिझाती है
और थक जाने पर
चट कर जाती है
लोग यूं ही गपशप
कर लिया करते हैं
सुना तुमने
..........................
अच्‍छा!
कब हुआ?
बुरा हुआ!
27.05.1986

मौत – 2

मौत
इन्‍सान के लिए
काली और चमकदार
बिल्‍ली की तरह
आती है और
मौका देख कर
चुपचाप रास्‍ता काट जाती है
.................................
मैं, तुम
यह-वह
झपट कर एक-दूसरे को
भय में साझीदार बनाते हैं
जानते हो.........
घुटी-घुटी
आवाज आती है
कैसे हुआ?
क्‍या सचमुच.
27.05.1986

मौत – 3

दरवाजे पर आहट आई
मौत ने कॉलबेल बजाई
मैं खोल ही पड़ता
उठकर उसका रास्‍ता
कॉलबेल बंद हो गई
चली गई बिजली
बच्‍चा चौंक कर जग गया
फिर बंद ही रह गया
दरवाजा
सुबह होने तक.
15.07.1993

7 comments:

  1. सर आप जिंदगी को जीकर लिखते हैं आप अलग से लिखये मत बस जो बोलते हैं या सोचते हैं उसे लिख डालिए .
    खुबसूरत मह्सुसियत ज़िन्दगी के करीब .......एक शाश्वत

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  2. गहन अभिव्यकित, जीवन में ऐसा ही कुछ घटता है जिसकी बाद में सिर्फ़ चर्चा ही होती है।

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  3. सुन्दर क्षणिकाएं...
    सादर

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  4. दरवाजे पर आहट आई
    मौत ने कॉलबेल बजाई
    मैं खोल ही पड़ता
    उठकर उसका रास्‍ता
    कॉलबेल बंद हो गई
    चली गई बिजली
    बच्‍चा चौंक कर जग गया
    फिर बंद ही रह गया
    दरवाजा
    सुबह होने तक.....

    बधाई ....!
    बिजली के बहाने ही सही बच तो गए ....:))

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  5. बहुत बढ़िया..............
    हम कविता का मर्म समझें तो बात है...

    सादर
    अनु

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  6. बहुत खूब ... मौत की हर बिसात लाजवाब ... जबरदस्त ...

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