मौत – 1
मौत
चूहों के लिए
बिल्ले की तरह आती है
गुर्राती है
डराती है
खिलाती है/खिझाती है
और थक जाने पर
चट कर जाती है
लोग यूं ही गपशप
कर लिया करते हैं
सुना तुमने
..........................
अच्छा!
कब हुआ?
बुरा हुआ!
27.05.1986
मौत – 2
मौत
इन्सान के लिए
काली और चमकदार
बिल्ली की तरह
आती है और
मौका देख कर
चुपचाप रास्ता काट जाती है
.................................
मैं, तुम
यह-वह
झपट कर एक-दूसरे को
भय में साझीदार बनाते हैं
जानते हो.........
घुटी-घुटी
आवाज आती है
कैसे हुआ?
क्या सचमुच.
27.05.1986
मौत – 3
दरवाजे पर आहट आई
मौत ने कॉलबेल बजाई
मैं खोल ही पड़ता
उठकर उसका रास्ता
कॉलबेल बंद हो गई
चली गई बिजली
बच्चा चौंक कर जग गया
फिर बंद ही रह गया
दरवाजा
सुबह होने तक.
15.07.1993
सर आप जिंदगी को जीकर लिखते हैं आप अलग से लिखये मत बस जो बोलते हैं या सोचते हैं उसे लिख डालिए .
ReplyDeleteखुबसूरत मह्सुसियत ज़िन्दगी के करीब .......एक शाश्वत
गहन अभिव्यकित, जीवन में ऐसा ही कुछ घटता है जिसकी बाद में सिर्फ़ चर्चा ही होती है।
ReplyDeleteसुन्दर क्षणिकाएं...
ReplyDeleteसादर
सुंदर.. ।
ReplyDeleteदरवाजे पर आहट आई
ReplyDeleteमौत ने कॉलबेल बजाई
मैं खोल ही पड़ता
उठकर उसका रास्ता
कॉलबेल बंद हो गई
चली गई बिजली
बच्चा चौंक कर जग गया
फिर बंद ही रह गया
दरवाजा
सुबह होने तक.....
बधाई ....!
बिजली के बहाने ही सही बच तो गए ....:))
बहुत बढ़िया..............
ReplyDeleteहम कविता का मर्म समझें तो बात है...
सादर
अनु
बहुत खूब ... मौत की हर बिसात लाजवाब ... जबरदस्त ...
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