Saturday, April 21, 2012

पुनर्नवा

जीना
उन्हीं क्षणों को
फिर-फिर
जिन्हें जिया
होकर अस्थिर
आकृति नई है
पर व्यक्ति परिचित
अथवा
व्यक्ति वही
आकृति परिवर्तित
पर समय न ही
प्रतीक्षा करता
न ही लौटता
कभी
उन्हीं बिन्दुओं पर
फिर

1 comment:

  1. पर समय न ही
    प्रतीक्षा करता
    न ही लौटता
    कभी

    ऐसा ही जीवन है . बस लौटकर आता ही नहीं फिर आपसे
    अपेक्षा पूरी तन्मयता से जीयें .

    ReplyDelete