Thursday, April 5, 2012

कनुप्रिया के लिए

मेरे घर आई एक प्यारी परी,
सोचते हैं लोग क्यूं आती है मुझसे मिलने
और मैं क्यूं हो जाता हूं बेचैन उसके बिना
क्यूं याद करता हूं और बातें करता हूं
पूरे दिन, देर रात और सपनों में भी उससे
वो मेरी कोई नहीं, लोग कहते हैं.
मैं उसका कोई नहीं, मैं जानता हूं
फिर क्यूं मुझे अपनी सी लगती है
मेरे लिए इतना क्यूं सोचती है.
मेरी इतनी परवाह क्यूं करती है.
सोचता हूं अक्सर, शायद
पिछले जन्म का कोई रिश्ता हो इसलिए
ईश्वर ने बंधन, बांधने में कोई भूल की इसलिए
मैं जानता हूं
वह मुझसे बेहतर जानती है मेरे बारे में
फिर भी अक्सर कहती है
मानसरोवर तक उड़ने के लिए
अब भी वक्त है
जबकि हम दोनों जानते हैं, वक्त की मार
मुझ पर कितनी सख्त है
फिर भी थके पंखों से एक बार
मानसरोवर तक उड़ने को, मन करता है
उसके लिए एक अंजुरी
खुशियों के मोती चुनने का, मन करता है
उसके साथ एक सपना बुनने को, मन करता है
उसके लिए एक और जिंदगी जीने का, मन करता है.

17/11/1992

10 comments:

  1. फिर भी थके पंखों से एक बार
    मानसरोवर तक उड़ने को, मन करता है
    उसके लिए एक अंजुरी
    खुशियों के मोती चुनने का, मन करता है
    उसके साथ एक सपना बुनने को, मन करता है
    उसके लिए एक और जिंदगी जीने का, मन करता है.

    सर इसीलिए तो कहता हूँ

    आज फिर जीने की तमन्ना है
    आज फिर मरने का इरादा है

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  2. I am simply honoured u all liked it.Thanks a lot.

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  4. I am simply honoured u all liked it.Thanks a lot.

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  5. सच्चा प्यार इसी को कहते हैं, जन्मो के बंधन किसी भी बंधन के मोहताज नहीं होते... भाव विभोर करती रचना... ह्रदयस्पर्शी रचना....

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  6. मनको छूती भावपूर्ण रचना|
    आशा

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  7. बहुत बढ़िया मन को छूती रचना

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  8. bahut sundar komal bhavon se saji pyari rachna....

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  9. अच्छी लगीं आपकी कविताएँ...

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