Wednesday, April 6, 2011

कविताःछत्‍तीसगढ़

पिछले दिनों
'कविता छत्‍तीसगढ़'
पुस्‍तक प्रकाशित हुई है.
वरिष्‍ठ साहित्‍यकार
श्री सतीश जायसवाल
द्वारा संपादित पुस्‍तक का प्राक्‍कथन
कवि-चित्रकार श्री विश्‍वरंजन
(इन दिनों छत्‍तीसगढ़ पुलिस महानिदेशक) ने
'कुछ जरूरी बात' शीर्षक से लिखा है.
पुस्‍तक में मेरी ये तीन कविताएं शामिल हैं-

चांद डूब जाता है
नहीं
चांद पर बैठी
चरखा चलाती
बुढि़या की नहीं
खरगोश की बात कर रहा हूं
जो रोज चांद उगने पर
अपनी पिछली टांगों पर खड़ा
हो जाता है
सिपाही की तरह
मानों आज चांद को डूबने नहीं देगा
इस कोशिश में
वह मूंछे नचाता है
भयावह अंदाज में
होंठ सिकोड़ कर
पीले और नुकीले
दांत दिखाता है
लेकिन इन सब के बावजूद
नहीं छुपा पाता
आंखों में उभरा भय
धीरे-धीरे एक हाथ बढ़ता है
उसकी ओर
उठा लेता है उसे
पकड़ कर
लंबे कानों से
डाल देता है
सुनहरे तारों के पिंजरे में
और चांद डूब जाता है.

ध्रुव तारा भी
पढ़ते-पढ़ते
जब जाना
ध्रुव तारा भी
अटल नहीं
तब से
किसी एक जगह
जम जाना
टलता रहा.

चेहरा
जब इतना करीब हो
चेहरे से
कि
आंखों में बनने
लगें
आंखों के अक्‍स
तब कैसे हो
आपसे
मेरे चेहरे की
पहचान
   अलग-अलग.

12 comments:

  1. तीनों रचनाएँ भावपूर्ण , सुन्दर ......

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  2. एक नहीं तीनों रचनाएँ एक बढ़ कर एक आपकी सोंच को नमन , सुन्दर अभिव्यक्ति , शुभकामनायें

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  3. राहुल जी के दिए लिंक से यहाँ तक पहुंची ...
    क्या संयोग था की मैंने भी ध्रुवतारे पर लिखा , मगर उसकी स्थिरता पर ...
    एक अनूठी दृष्टि यह भी है चाँद और तारों पर ...
    सुन्दर रचनाएँ !

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  4. अतिसुन्दर प्रस्तुति राजेश जी.आपके ब्लॉग पर आकर सुखद आभास हुआ.
    आप मेरे ब्लॉग पर आये इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका.

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  5. कविताओं के प्रकाशन की बधाई.

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  6. तीनों रचनाएँ एक बढ़ कर एक

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  7. तीनों रचनाएँ एक बढ़ कर एक|
    राम नवमी की हार्दिक शुभकामनायें|

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  8. ऐसा लगा बड़ी फुरसत है इन रचनाओं में।

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  9. सुन्दर अभिव्यक्ति , शुभकामनायें

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  10. तब कैसे हो
    आपसे
    मेरे चेहरे की
    पहचान
    अलग-अलग.
    memorable and beautiful lines.

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  11. तब से
    किसी एक जगह
    जम जाना
    टलता रहा.
    truth of life .

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  12. मानों आज चांद को डूबने नहीं देगा

    चाँद का डूबना ऐसा भी अंदाज़ रखता होगा अच्छा लगा

    कैसा अंदाज़ अलग डूबने डुबाने का
    तेरा अंदाज़ जुदा प्यार जतलाने का

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